शारदा सिन्हा की वो बातें जो आप शायद नहीं जानते होंगे , पैसों के लिए काम कभी नहीं किया !
Sharda Sinha : स्वर कोकिला के नाम से मशहुर शारदा सिन्हा बिहार कि शान थीं और उन्होंने लोकगायकी के माध्यम से लोगों के जगह बनाया था। कहते हैं कि शादियों और छठ पूजा में यदि शारदा सिन्हा का गाना न बजे तो शादियां और छठ पूजा अधूरा लगता है।
शारदा सिन्हा ने लोकगायिकी की शुरुआत कब की थी ?
Sharda Sinha : एक इंटरव्यू के दौरान शारदा सिन्हा ने बताया कि लोकगायिकी की शुरुआत उन्होंने अपने घर से ही किया था। उन्होंने कहा कि जब उनके बड़े भाई की शादी थी तब द्वार छेकाई का रस्म होना था तब उनकी भाभी ने कहा कि शारदा नेग कैसे लोगो भाई से ? फिर उनकी भाभी ने उनको एक गीत सिखाया ” द्वार के छेकाई पहले चुकैया है हे दुलरुआ इ भैया तब जैहै कोहबर आपन हे दुलरवा भैया” । और इसी गीत से उनकी लोकगायिकी की सफर की शुरुआत हुई। इसके बाद उन्होंने कई गाने गए , यहाँ तक कि उन्होंने बॉलीवुड तक अपनी पहचान बनायीं। बिहार की कोकिला कहे जाने वाली शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत साल 1970 में की थी और उन्होंने 1974 में अपना पहला भोजपुरी गीत गाया था। शारदा सिन्हा के कुछ लोकप्रिय गीत हैं : हो दीनानाथ, केलवा के पात पर, पाहन-पानि, उग हो सुरुज देव, मोहि लेलखिन सजनी। 1 अक्टूबर 1952 को बिहार में जन्मी शारदा सिन्हा को उनकी आवाज से ही लीग पहचान लेते हैं , इन्हे स्वर कोकिला भी कहा जाता है। शारदा सिन्हा ने 5 नवम्बर 2024 को दिल्ली के AIIMS अस्पताल में अपनी आखिरी सांस ली।
शारदा सिन्हा किस तरीके के गाने के लिए मशहूर थीं ?
Sharda Sinha : शारदा सिन्हा लोकगीतों के लिए जानी जातीं थीं। वो पारम्परिक गीतों को गाना पसंद करतीं थीं। छठ और शादी की गीतों को लेकर वो लोगों के बिच काफी मशहूर थी। आज वो हमारे बिच तो नहीं हैं लेकिन वो अपनी आवाज के माध्यम से हमारे बिच हमेशा रहेंगी। शारदा सिन्हा के लगभग सारे गाने भोजपुरी और मैथिलि में होते थे, हालाँकि उन्होंने हिंदी में भी गाने गायें हैं। उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनको ढेर सारे भोजपूरी गीतों के ऑफर आते थे और ढेर पैसे भी मिलते थे लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि उन गानों को गाकर वो अपनी छवि ख़राब नहीं करना चाहतीं थी। वो सभ्य और अच्छे गानों को गाना पसंद करतीं थीं।